नई दिल्ली: नोएडा में रंगदारी का एक सनसनी खेज मामला सामने आया है जहाँ दो पत्रकारो द्वारा चैनल के मालिक और स्टाफ को बलात्कार के झूठे मामले में फसाने की धमकी देकर 65 करोड़ रुपये की रंगदारी माँगी गई। पुलिस में शिकायत करने के बाद नोएडा पुलिस द्वारा इन दोनो पत्रकारो को गिरफ़्तार कर गौतम बुद्ध नगर की एक अदालत में पेश किया गया, जहाँ से उन्हें 14 दिन की न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।
नोएडा पुलिस ने भारत 24 समाचार चैनल की एंकर शाज़िया निसार और अमर उजाला डिजिटल (Online) विंग के एंकर आदर्श झा को गिरफ्तार किया है। इनके ख़िलाफ़ तीन एफआईआर दर्ज की गई हैं, जिनमें रंगदारी, ब्लैकमेलिंग और धमकाने जैसे गंभीर आरोप लगे हैं। चैनल के सूत्रों के अनुसार, दोनों पत्रकारों पर भारत 24 न्यूज़ चैनल के शीर्ष अधिकारियों से 65 करोड़ की फिरौती मांगने और झूठे बलात्कार के आरोप लगाने की धमकी देने का आरोप है।
एफआईआर भारत 24 न्यूज़ चैनल के प्रबंध निदेशक जगदीश चंद्रा, कंसल्टिंग एडिटर अनीता हाडा और एचआर प्रमुख अनु श्रीधर की शिकायतों के आधार पर दर्ज की गई हैं। न्यूज़ चैनल के सूत्रों ने बताया कि अन्य कर्मचारियों की शिकायतों के आधार पर और भी एफआईआर दर्ज की जा सकती हैं।
पुलिस ने शाज़िया निसार के घर की तलाशी के दौरान 34 लाख रुपये नकद बरामद किए हैं। भारत 24 न्यूज़ चैनल के एमडी जगदीश चंद्रा ने एक न्यूज़ एजेंसी से बात करते हुए कहा कि कानून अपना काम कर रहा है। चंद्रा आगे कहते है कि उसने (शाज़िया) मुझे ही नहीं बल्कि एडिटर सैय्यद उमर, कंसल्टिंग एडिटर अनीता हाडा, एचआर हेड अनु और डेस्क व असाइनमेंट टीम के कई लोगों को भी धमकाया करती थी सभी उससे बहुत परेशान थे।
गिरफ्तारी से कुछ घंटे पहले ही चैनल ने शाज़िया निसार को नौकरी से बर्खास्त कर दिया था। शाज़िया निसार पहले रिपब्लिक भारत में कार्यरत थीं, जहां वे रूस-यूक्रेन युद्ध की रिपोर्टिंग के दौरान अपने अतिनाटकीय अंदाज़ के लिए कुख्यात हो गई थीं। वहीं, अमर उजाला की ओर से आदर्श झा की गिरफ्तारी पर अब तक कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया है। अमर उजाला का बयान आते ही अपडेट किया जाएगा। बता दे पत्रकारिता एक जिम्मेदारी भरा पेशा है तभी मीडिया को चौथा स्तंभ कहा जाता है। लेकिन अक्सर सुनने को मिलता है कि ऐसे कई चैनल और राष्टीय समाचार पत्र है जिनके पत्रकार आए दिन सरकारी विभागों, राजनीतिक लोगों और बिज़नेस मेनों से रंगदारी की माँग करते देखे जाते है लेकिन वह अपने राजनीतिक संबंधों या प्रशासन में अपनी गहरी पैठ के चलते बच निकलते है और उनका नाम सार्वजनिक नहीं होता। इन सभी पर लगाम लगाने की ज़रूरत है ताकि पत्रकारिता में आम जन का विश्वास बना रहे और जनता अपनी समस्या साझा करने में सकोच ना करे।