उत्तर प्रदेश: सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया है जिसमें अदालत ने मदरसा एक्ट को संविधान के ख़िलाफ़ बताया था। मदरसा एक्ट पर यह फैसला चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने सुनाया है। पीठ ने कहा कि हाईकोर्ट का फैसला ठीक नहीं था और इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने मदरसा एक्ट को भी सही ठहराया।
कोर्ट के इस फ़ैसले से 16 हज़ार मदरसों को राहत मिली है और अब यूपी में मदरसे चालू रहेंगे। उत्तर प्रदेश में मदरसों की कुल संख्या लगभग 23,500 है और इनमें 16,513 मदरसे मान्यता प्राप्त हैं यानी यह सभी मदरसे रजिस्टर्ड हैं। उत्तर प्रदेश में 2004 में ये कानून बनाया गया था। इसके तहत मदरसा बोर्ड का गठन भी किया गया था और इसका मकसद मदरसा शिक्षा को सुव्यवस्थित करना था। इसमें अरबी, उर्दू, फारसी, इस्लामिक स्टडीज, तिब्ब (ट्रेडिशनल मेडिसिन), फिलोसॉफी जैसी शिक्षा को परिभाषित किया गया है।
यूपी में 25 हजार मदरसे हैं, जिनमें से लगभग 16 हजार को यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा से मान्यता मिली हुई है। साढ़े आठ हजार मदरसे ऐसे हैं, जिन्हें मदरसा बोर्ड ने मान्यता नहीं दी है। मदरसा बोर्ड 'कामिल' नाम से अंडर ग्रेजुएशन और 'फाजिल' नाम से पोस्ट ग्रेजुएशन की डिग्री देता है। इसके तहत डिप्लोमा भी किया जाता है, जिसे 'कारी' कहा जाता है. बोर्ड हर साल मुंशी और मौलवी (10वीं क्लास) और आलिम (12वीं क्लास) के एग्जाम भी करवाता है।
मदरसा बोर्ड कानून के ख़िलाफ़ अंशुमान सिंह राठौड़ नाम के शख्स ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। राठौड़ ने इस कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी थी। इसी पर हाईकोर्ट ने 22 मार्च को फैसला सुनाते हुए कहा था कि यूपी बोर्ड ऑफ मदरसा एजुकेशन एक्ट 2004 'असंवैधानिक' है और इससे धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का उल्लंघन होता है। साथ ही राज्य सरकार को आदेश दिया थे कि मदरसों में पढ़ने वाले बच्चों को सामान्य स्कूलिंग सिस्टम में शामिल करे।