दिल्ली के बढ़ते प्रदूषण पर केंद्र और राज्य सरकारों पर उठे सवाल

दिल्ली: दिल्ली/एनसीआर में सर्दिया आने की दस्तक के साथ ही लोग क़रीब तीन महीने तक एक तरह के गैस चैंबर में ज़हरीली हवा के बीच सांस लेने को मजबूर होते हैं.इसका असर बच्चों, बुज़ुर्गों, गर्भवती महिलाओं और बीमार लोगों पर सबसे ज़्यादा होता है. हालाँकि इन दिनों दिल्ली में प्रदूषण का असर इतना ज़्यादा होता है कि यह स्वस्थ इंसान को भी गंभीर बीमारियाँ दे सकता है. दिल्ली के प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट कई बार नाराज़गी जता चुका है. केंद्र सरकार से लेकर दिल्ली और आसपास की राज्य सरकारें अलग-अलग दावे करती रही हैं, लेकिन इससे प्रदूषण के स्तर में कोई बड़ी राहत नज़र नहीं आई है..सर्दियों में कम तापमान, हवा नहीं चलने और बारिश नहीं होने से प्रदूषण करने वाले कण ज़मीन की सतह के क़रीब काफ़ी कम इलाक़े में जमा हो जाते हैं. पर्यावरण के लिए काम करने वाली संस्था ग्रीनपीस की एक हालिया रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत की राजधानी दिल्ली दुनियाभर में सभी देशों की राजधानी में सबसे ज़्यादा प्रदूषित शहर है. मेडिकल जर्नल बीएमजे की स्टडी में पाया गया है कि प्रदूषण की वजह से भारत में हर साल 20 लाख से ज़्यादा लोगों की मौत होती है. देश की राजधानी दिल्ली और इसके आसपास के इलाक़ों में दिवाली के पहले ही एक्यूआई 'बहुत ख़राब' स्तर पर पहुँच गई है और इससे लोगों को सांस लेने में परेशानी शुरू हो गई है. सुप्रीम कोर्ट ने प्रदूषण नियंत्रित करने के लिए बने क़ानूनों को लेकर केंद्र सरकार, पंजाब और हरियाणा की राज्य सरकारों पर तीखी टिप्पणी की है और कहा है कि ये किसी काम के नहीं हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्वच्छ और प्रदूषण मुक्त वातावरण में रहना सभी नागरिकों का मौलिक अधिकार है और नागरिकों के अधिकार की रक्षा करना केंद्र और राज्य सरकारों का कर्तव्य है. कोर्ट ने कहा कि पराली जलाने पर जुर्माने से संबंधित प्रावधानों को लागू नहीं किया गया है. हालाँकि दिल्ली की इस हालत और प्रदूषण के मामलों पर सुप्रीम कोर्ट पहले भी कई बार तीखी टिप्पणी कर चुका है.